उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘गंगा! प्यार का अन्त सम्भव है... पर ‘प्रेम‘ अमर होता है!... और हमने तुमसे प्यार नहीं प्रेम किया!‘‘ देव ने सच-सच गंगा को बताया था।
‘‘गंगा! अब तो हमें स्वर्ग भी नहीं चाहिए!... बल्कि स्वर्ग के बदले हम ईश्वर से माँगेंगें कि हमारी मृत्यु के पश्चात हमारी आत्मा तुम्हारी आत्मा में विलीन हो जाये जैसे पहाड़ों की कन्दराओं से होकर बहती हुई कोई नदी अन्त में समुद्र में विलीन हो जाती है!‘‘
ये देखो तो जरा... प्यार-व्यार के चक्कर में देव ने स्वर्ग को भी ठुकरा दिया। भला कोई ऐसा करता है क्या? स्वर्ग की कामना तो इस संसार में हर व्यक्ति करता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे मरने के बाद स्वर्ग नहीं चाहिए। ये लड़का तो जरूरत से ज्यादा भावुक निकल गया। मैंने सोचा...
‘गंगा! अब हमारे जीवन का अन्तिम् अध्याय स्वयं शिव ही लिखेंगें!’ देव ने कहा गंगा से बड़ी गंभीरतापूर्वक ये पंक्तियाँ लिखकर। मैंने जाना...
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
देव!
गंगा ने पढ़ा। अब पूरी चिट्ठी समाप्त हुई।
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