उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
तुम्हारी बाहों में ही हमारी मौत हो जाए! तुम्हारी पलकों की छाया में ही हम अपनी आखिरी साँस लें! तुम्हारे साये में ही हमारा दम निकल जाए!... अब बस! यही आखिरी ख्वाहिश है हमारी!‘‘ देव ने सिसकियाँ लेते हुए गंगा को अपनी आखिरी इच्छा बताई थी।
‘‘...इतना वरदान तो शिव हमें दे ही सहतें है गंगा? इतना पावर तो है ही शिव के पास गंगा?‘‘ देव ने गंगा से पूछा था रोते-रोते।
‘‘गंगा!... गोशाला के जिस शिवालय हम जाते हैं पूजा करने वहाँ हमने देखा है... जो औरतें आती हैं उनके हाथों पर उनके पतियों का नाम लिखा रहता है... इसलिये जिस दिन हमें आभास हुआ कि हमारी मृत्यु निकट है... हम शिवालय जाकर तुम्हारा नाम अपनी कलाई पर गोदवा लेगें.. इस उम्मीद में कि इस जन्म में न सही... अगले जन्म में तुम हमें मिल जाओ.. हमारा तुमसे मिलन हो जाए!‘‘ आत्मा की बात कागज पर आ गयी थी।
एक मामूली सी हलवाइन के प्रेम में पड़कर लड़का कुछ ज्यादा ही फिल्मी निकल गया। मैंने सोचा आश्चर्य से! क्या होता अगर देव को किसी गायिका, अभिनेत्री या नृत्याँगना से प्रेम हुआ होता?..... तब तो पिक्चर कुछ ज्यादा ही ट्रेजिडी वाली बनती। मुझे अनुभूति हुई....
‘‘गंगा! इस पूरे जगत में... पूरी सृष्टि में ‘प्रेम‘ शब्द ही सर्वाधिक बड़ा व सबसे अधिक शक्तिशाली शब्द है.! ...पर अब कुछ और लिखा तो ये शब्द अपनी शक्ति खो देगा! एक कमजोर शब्द में बदल जाएगा ये!
‘‘अब कुछ और लिखा तो ‘प्रेम‘ शब्द को स्वयं से भी घृणा हो जाएगी! स्वयं को कलंकित, अपमानित और तिरस्कृत महसूस करेगा ये ‘प्रेम‘ शब्द।
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