उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘शान्ती देवी डिग्री कालेज, रानीगंज, गोशाला उत्तर प्रदेश‘‘ लिखा था उस पर। देव ने पढ़ा। मैंने देखा.....
‘‘स्वागत है.... रानीगंज के इस देहात में देव!‘‘ देव ने कहा मुँह फुलाकर। मैंने सिर हिलाया....
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भाग्य और नियति दो अलग-अलग चीजें होतीं हैं... पर फिर भी दोनों में करीबी रिश्ता है, जैसे दो सगी बहनें। कर्म से भाग्य बदलता है.... पर नियति? नियति अपरिवर्तनीय होती है.... जिसे बदला नहीं जा सकता।
ये दोंनो सगी बहनें; भाग्य और नियति, बड़ी बेसब्री से देव का इंतजार कर रहीं थीं, पर देव को पता न था।
उसे ये बिल्कुल भी खबर न थी कि जहाँ पर वो जा रहा है, वहाँ क्या होगा? देव किन लोगों से मिलेगा..... आने वाले दिनों में? देव को ये बिल्कुल भी खबर नहीं थी कि ये बीएड का बकवास सा कोर्स और ये रानीगंज.... उसकी जिन्दगी बदल कर रख देगा... हमेशा-हमेशा के लिए! जैसे मैंने भविष्य देख लिया...
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