उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
सात दिन बाद
क्लास
ये एक चौकोर आकार में बना हुआ डिग्री कालेज था। इसका गेट किसी मन्दिर के प्रवेश द्वार की तरह था जो लाल और पीले रंग से अच्छे से रंगा हुआ था। महाविद्यालय में प्रवेश करते ही सामने की ओर एक बड़ी सी सफेद रंग की दीवार थी जिसमें हरे रंग से वट वृश्र और उससे निकली हुई नीचे की ओर आती हुई लताऐं बना हुआ था और उसके नीचे महात्मा बुद्व बैठ कर ज्ञान प्राप्त कर रहे थे।
इमारत के चारों ओर ताड़ के ऊँचे-ऊँचे वृक्ष किसी गार्ड की तरह खड़े थे। ये देखने में अच्छे थे और कालेज को सही रूप देते थे। मैंने गौर किया.....
इसमें कई संकाय थे.... कला संकाय, विज्ञान संकाय, वाणिज्य संकाय, बीपीएड और अन्त में बीएड संकाय। देव ने एक दीवार पर ठीक-ठीक पढ़ा।
‘‘एक्सक्यूस मी!‘‘ एक लड़की ने देव को पुकारा।
वो, एक पतली दुबली... छोटे कद की लड़की थी, पिंक कलर का सलवार सूट पहने हुए।
छोटा सा चेहरा, इकहरा बदन... गोरा रंग... बिल्कुल श्रीदेवी जैसा। कान में छोटे-छोटे पाँच पंखुडियों वाले नीले रंग के आर्टीफीशियल टाँप्स कान में पहनें। मैंने नोटिस किया.....
‘‘क्या आप बता सकते हैं कि बी.एड की क्लास कहाँ चलती है?‘‘ उस लडकी ने पूछा।
‘‘मै भी वही ढूँढ़ रहा हूँ!‘‘ देव बोला
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