उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
और छह महीने से भी ज्यादा का समय लगा विभिन्न प्रकार की मिठाईयाँ बनाने में। गंगासागर हलवाई, गंगा की माँ रुकमणि और खुद गंगा की देख-रेख में देव ने लगभग सारी मिठाईयाँ बनानी सीख ली। मैंने जाना....
‘बेटवा! इ सात फुट के हीरो का का नाम है?’ गंगा का बाबू देव से पूछता था।
‘ऐका!... हम कई चक्कर पिकचरिया मा देखा है...! इ बहुत सही गावत है, मारौ कर लेत है... एक पिक्चर का देखेन रहा कि एक भेली बनावे वाला एक ठू हलवाई बना रहा.... ओके बाद से हम जान गैन कि पिछले जन्म मा इ जरूर हलवाई रहा होई!’ गंगासागर हलवाई अपने पढ़े-लिखे दामाद देव से पूछते थे जब टीवी में कोई अमिताभ बच्चन की फिल्म आती थी।
‘बाबू! ये अमिताभ बच्चन है!... आज के जमाने का बहुत बड़ा हीरो है!... ये आज भी ऐक्टिंग करता है। इसकी फिल्में आज भी रिलीज होती हैं!... ये बहुत अमीर आदमी है... पर सबसे बड़ी बात है कि वो दिल से भी बहुत बड़ा आदमी है... बहुत भला आदमी है!’ देव गंगा के बाबू को बताता था।
‘साउथ इंडिया वाले तो अमिताभ का मन्दिर बताके उसकी पूजा करते हैं.... दूध ,नारियल और फूलमाला चढ़ाते हैं... उसे भगवान मानते हैं!’ देव गंगा के बाबू को बताता था
‘हैं!....’ वो चौक पड़ा।
‘इ बात तो बेटवा हमका नाई पता रहा... तब तो अभिताभ बच्चन सच मा बड़वार आदमी है... .तब अगर कौनो ओके पूजा करत है.. तो कौनो बुराई नाई है...!!’ देव के ससुर गंगासागर हलवाई ने अपना फैसला सुना दिया। मैंने देखा....
|