उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
देव की साँस में साँस आई कि गंगा और पुत्रियाँ दोनो सही सलामत हैं। देव गंगा से मिलने अन्दर गया...
‘ह ल वा इ न !! सुना है आज तुम मम्मी बन गयी हो!!’ देव बोला गंगा से मजाक करते हुए और अपना सीधा हाथ आगे की ओर बढ़ाया, गंगा का हाथ अपनी हथेली पर रखा और फिर अपना बायाँ हाथ गंगा के हाथ पर जिससे वो जाने कि देव गंगा के हर सुख-दुख में उसका साथ सदैव देगा।
‘आह!....’ गंगा ने एक चैनभरी सुकूनवाली ठण्डी साँस छोड़ी।
वो मुस्कुरा उठी। वो बेड पर लेटी थी अब देव के लिए बैठने की कोशिश करने लगी...
‘नहीं! उठो मत गंगा! लेटी रहो!!’ देव ने गंगा को उठने से मना कर दिया। तभी गीता मामी भी गंगा से मिलने अन्दर आ गई।
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‘हम तो सोचेन रहा कि गंगा के लड़का होई तो हमार वंश चली! मरे से पहले नाती के मुँहा तो देख लेतेन! लड़कियाँ भवी और वहू दो दो!! का एक लड़का ना होए सकत रहा!’ गंगा की अनपढ़ माँ रुकमणि अफसोस करने लगी कमरे के बाहर पड़ी लम्बी सी बेन्च पर बैठकर मुँह फुलाकर, अपने भाग्य को कोसने लगी।
‘अरे! समधिन जी! आप रहेंगी गँवार की गँवार... बिल्कुल जाहिल की जाहिल!’ सावित्री को बड़ा गुस्सा आ गया गंगा की माँ की इस बात पर।
‘लड़कियाँ होना कोई बुरी बात तो नहीं! आप खुद भी तो एक लड़की हैं! आप को तो खुश होना चाहिए कि जच्चा-बच्चा दोनों की जान बच गई है, सब-कुछ सही से निपट गया’ सावित्री ने रुकमणि को समझाया।
देव ने दोनों पुत्रियों का नाम ‘गौरी‘ और ‘पार्वती‘ रखा भगवान शंकर की पत्नियों के नाम के आधार पर। परिवार में उसी प्रकार खुशी मनाई गयी जैसे लड़का होने पर मनाई जाती है। मैंने पाया....
‘गौरी’ गंगा को पड़ी। बड़ी गुस्सैल मिजाज जो बात-बात पर बिगड़ जाए। वहीं ‘पार्वती’ देव को पड़ी। बड़ी सीधी-साधी। बिल्कुल गाय की तरह सीधी। मैंने जाना.....
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