उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
फिर एक साल बाद
गंगा को एक बार फिर से इसी सामुदायिक केन्द्र में भर्ती कराया गया। देव ने एक बार फिर से डाक्टरों से हाथ जोड़े कि बिना आँपरेशन के ही डिलीवरी करवायें।
सभी परिवारजन एक बार फिर से राम-नाम जपने लगे। तभी सफेद रंग की ड्रेस पहने नर्स भागी-भागी देव के पास आई....।
‘मुबारक हो! आपके लड़का हुआ है!!’ नर्स खुश होकर बोली।
‘मेरी मिठाई की दुकान वो सामने ही है!! सड़क के उस पार! आज से आपके लिए आजीवन मिठाइयाँ फ्री हैं!!’ देव ने सारी जिन्दगी उस नर्स को फ्री में मिठाईयाँ देने का ऐलान किया। वो नर्स बहुत खुश हुई। इतनी बड़ी बक्शीश आज तक उस सामुदायिक केन्द्र की किसी नर्स को नहीं मिला था। मैंने जाना...
गंगा को पुत्र नार्मल डिलीवरी से ही हुआ था। देव ने इसका नाम एक बार फिर से भगवान शंकर के नाम पर ‘सत्यम्‘ रखा। क्योंकि सत्य ही शिव थे और शिव ही सत्य थे। शिव की आराधना से ही देव ने गंगा का प्रेम जीता था। मैंने जाना....
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