उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘देखो! देखो जरा! कोई भी बीएड करने चला आता है?‘‘ उस घमण्डी टीचर ने कहा हेय दृष्टि से एक बार फिर से।
गायत्री को ये बिल्कुल भी अच्छा न लगा। वहीं देव को भी ये बुरा लगा। पर दोनो ही डरे हुए थे सहमे-सहमे से। मैंने पाया....
सही जवाब है-
ब. उनसे पूँछोगी कि वे क्यों नहीं ध्यान दे रहे है‘‘ आखिर में उसने उत्तर बताया।
‘‘सिट डाउन‘‘ उसने फिर से कहा बड़ी कड़क आवाज में धमकाने वाले स्वर में।
गायत्री बैठ गयी।
अब वो टीचर का रूख अन्य स्टूडेन्ट की तरफ चला गया। अब वो अन्य लोगों से प्रश्न पूछने लगा।
‘‘गायत्री सुनो! ये क्लास है या जेल? या कोई आर्मी की छावनी? ये तो हम लोगों का कचूमर निकाल लेगा! हम लोगों को मिक्सर में डाल कर हमारा जूस निकाल कर पी जाएगा एक साल में‘‘ देव ने गायत्री से फुसफुसाते हुए कहा।
‘‘देव! इस टीचर के सबजेक्ट पर हम लोगों को खास ध्यान देना होगा! वरना ये हम लोगों को पक्का फेल कर देगा!‘‘ गायत्री इस निष्कर्ष पर पहुँची।
‘‘यू आर करेक्ट गायत्री!‘‘ देव ने सहमति जताई। मैंने देखा.....
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