उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘कल जब मै आया था,.तब मुझे यहीं पड़ा मिला था‘‘ देव बोला।
‘‘अच्छा! ...तो जाओ जाकर दे दो, वरना ये रो रोकर पूरे क्लास को भिगो देगी‘‘ गायत्री बोली।
देव ने उस लड़की को जिसका नाम गंगा था लेटर दे दिया।
‘धन्यवाद!’ वो बोली
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क्लास के सारे लड़को को सफेद शर्ट पैन्ट सिलवाने को कहा गया, और सारी लड़कियों को आसमानी साड़ी खरीदने को कहा गया।
एक हफ्ते बाद।
देव सफेद शर्ट पैण्ट मे गया और सभी लडकियाँ फिकी 2 आसमानी साडी मे आयी । बिल्कुल बकवास और बिल्कुल बेरंग साडी । इस प्रकार क्लास का माहौल और ज्यादा गंभीर ,अरूचिकर ,बोरिंग और उदासीन हो गया। ये बात उसी तरह है कि जैसे बनारस के आश्रमांे मे रहने वाली पतिविहीन स्त्रियों को सूती सफेद बेरंग बिना डिजाइन वाली साड़ी पहनने को कही जाए। मैंने तुलना की
‘‘दिल्ली से इण्टरनेशनल बिजनेस और मार्केटिंग में एमबीए करने के बाद.....अब फिर से डेस पहनो! ....क्या. बकवास है?
‘‘पच्चीस के हो गए देव ...अभी भी डेस से पीछा नहीं छूटा‘‘
मेरी तो किस्मत ही खराब है!‘‘ देव ने मुँह पिचका लिया
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