उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मित्ररेखा
देव की इस बीएड क्लास में एक नई टीचर आई..... जिसका नाम था मित्ररेखा। वो बडी भली मानुष थी। मैंने जाना.....
वो क्लास में आकर सबसे पहले सारे बच्चों का हाल चाल पूछती थी। उसके बाद पढ़ाना शुरू करती थी। वह बहुत सीधी साधी थी। मैंने नोटिस किया...
वो शादी शुदा थी।
‘‘पर ये क्या? शादी होने के कुछ साल बाद ही उनका पति से तलाक हो गया। ये कहानी तब पता चली जब चंचल और महाजिज्ञासु देव ने मैडम के बुझे-बुझे से चेहरे का कारण पूछा। यहाँ भी एक दुखद कहानी थी।
मैडम के पति का व्यावहार ठीक नहीं था। इतनी सीधी साधी होने के बावजूद उनका पति उनमें हजारों कमियाँ गिनाता था, बुरा भला बोलता था। नतीजतन मामला खत्म हुआ डिवोर्स पर आकर।
मैडम के दो बच्चे भी हुए। एक लड़का और एक लड़की। लड़के को पति ने रखा लिया और लडकी को मैडम ने। इस प्रकार ये कहानी खत्म हुई।
‘‘देव! हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है? मैंने देव से पूछा।
.‘‘ ....शायद ऊपरवाला अच्छे लोगों की ही ज्यादा परीक्षा लेता है!‘‘ देव ने अन्दाजा लगाते हुए कहा।
‘‘ये क्या बकवास कान्सेप्ट है?
‘‘ऊपर वाला खुद ही कन्फ्यूज है!
‘‘उसका कान्सेप्ट तो खुद ही क्लीयर नहीं!
‘‘जो आदमी अच्छा है... उसके साथ तो अच्छा होना चाहिए‘‘
‘‘ ...और जो बुरा है ....उसके साथ बुरा होना चाहिए! .....होना तो ऐसा ही चाहिए!.....फिर हमेशा अच्छे लोगों को ज्यादा दुखा दर्द क्यों झेलते पडतें हैं।
मैंने सोचा आश्चर्य से...
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