उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
देव एक 26 वर्षीय नौजवान था, दिल्ली से उच्च शिक्षा प्राप्त, जो देखने से ही किसी सभ्य समाज का प्राणी लगता था। युवती भी नवयुविका थी, आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी जो शिक्षित भारतीय नारी समाज का प्रतिधित्व कर रही थी।
युवती ने देव को देखा...
देव ने युवती को देखा...
फिर! फिर! फिर! ... फिर क्या हुआ? मेरे मन में प्रश्न उठा
फिर युवती देव की ओर मुँह करके लेट गयी। दोनों एक दूसरे को देखने लगे, जैसे एक दूसरे को निहारने लगे, जैसे समझने लगे, जैसे एक दूसरे को जानने लगे, पहचानने लगे। जैसे आँखों ही आँखों में बिना बोले ही बात करने लगे।
कुछ समय यूँ ही बीता....
रिश्तों की प्रगाढ़ता बढ़ गई। दोनों अजनबी से जान-पहचान वाले बन गये। दोनों भूल गये कि ट्रेन में अन्य लोग भी थे जो उनकी निगरानी कर सकते थे, उन्हें रोक सकते थे, उन्हें टोक सकते थे पर उन्हें परवाह न थी। रात आई साथ में तोहफे में सभी के लिए नींद लाई।
पर ये क्या? देव को नींद न आई...
और ये क्या? युवती को भी नींद न आई, जिसने अभी-अभी यौवन की दहलीज पर कदम रखा था।
देव को शर्म न आई। वहीं दूसरी ओर युवती को भी लाज न आई.... जो शायद इस बात की सूचक थी कि अब दोनों ही वयस्क हो चुके थे। अब शायद दोनों को ही किसी हमसफर की तलाश थी। अब शायद दोनों को ही किसी प्रेमी-प्रेमिका की तलाश थी। मैंने अन्दाजा लगाया...
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