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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘हाँ यार 100 % विश्वास नहीं तो संगीता या गंगा से पूछ लो‘‘ देव ने बड़े विश्वास से कहा।

‘‘तुम कितने साल की हो?

‘चौबीस‘

‘और आप?’

‘पच्चीस’ देव ने जवाब दिया।

देव और गायत्री ने बोरिंग क्लालेस से बचने का तरीका ढूँढ़ लिया था.... धीरे-धीरे गप्पें मारकर। वहीं दूसरी ओर गंगा संगीता के बगल बैठकर खूब गप्पें मारती थी। वहीं अन्य स्टूडेन्ट में कुछ सोते रहते थे, कुछ जो गाँव-देहातों से आते थे वो गुटखा या सुर्ती खा लेते थे और खुद को नशे में कर लेते थे ...समय काटने के लिए।

जहाँ गंगा का चेहरा बहुत आँयली था ...लगता था जैसे चेहरे से तेल टपक रहा है ...वही गायत्री का चेहरा था चमकदार और स्मूथ। जहाँ गंगा का चेहरा ज्यादातर फूला-फूला ....भभ्भड़ सा लगता था, वहीं गायत्री का चेहरा बिल्कुल बार्बी डाँल वाली गुड़िया जैसा था।

जहाँ गंगा साँवले रंग की थी, वही गायत्री गोरी। जहाँ गंगा रानीगंज जैसे देहात में रहकर देहातिन सी हो गयी थी, वही गायत्री लगती थी ...बिल्कुल शहरी।

अगर गायत्री को लहँगा चुनरी, साड़ी या कढ़ाई वाला सलवार सूट पहना दिया जाता और रेडीमेड गार्मेन्ट्स के शोरूम में खड़ा कर दिया तो लोग कन्फयूज हो जाते। वो ये जान ही नहीं पाते कि पुतला खड़ा है या कोई लड़की। मैंने तुलना की....

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