उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
शादी
इण्टरवल की बेल बजी। देव गायत्री और संगीता साथ बैठे लंच करने के लिऐं। सारे स्टूडेन्ट्स ने अपना-2 ग्रुप बना लिया था। सभी अपने-अपने ग्रुप मेंं ही बैकते थे। शादी की बात शुरू हो गयीं। गायत्री और संगीता ने शादी करने को एक अच्छा और बुद्विमानी भरा फैसला बताया।
पर ये क्या? देव गायत्री और संगीता से बिल्कुल भी सहमत न था ....
‘‘शादी?
ये तो पागलपन है! सनकीपन है! सराकर बेवकूफी है!‘‘ देव बोला
गायत्री और संगीता ध्यान से देव को सुनने लगी....
‘‘शादी करो! फिर गधे की तरह दिन रात काम करो!
न चैन! न आराम! ...बस काम ही काम!‘‘ देव बोला
दोनों चौंक पड़ीं।
‘‘अगर बीबी चिल्लाये तो चुप हो जाओ! ...अगर बकवास खाना बनाये तो उसे भी अच्छा बताओ!
‘‘अगर मोहल्ले मे किसी से लड़ जाये, तो माफी माँगनी पड़े‘‘
ना बाबा ना! मुझे नहीं करनी शादी‘‘ चंचल और शरारती देव बोला।
गायत्री और संगीता दोनो मुस्कराईं...देव के शादी के बारे में ये विचार सुनकर। उन्हें काफी आश्चर्य हुआ ये बात सुनकर। मैंने देखा....
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