उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘क्या है देव?‘‘ जैसे शिव ने पूछा प्रतीकात्मक रूप में।
‘‘मेरा बीएड में एडमीशन हो गया है और क्लास भी चल रही है‘‘ देव बोला।
‘‘उचित है देव!’ भगवान को भी ये जानकर प्रसन्नता हुई।
‘क्या कोई और मनोकामना है तुम्हारी?‘‘ जैसे शिव ने पूछा प्रतीकात्मक रूप में देव से बड़े प्यार से।
‘‘नहीं! नहीं! हमें और कुछ नहीं चाहिए! ... बल्कि हम कुछ बताना है!‘‘ देव ने इच्छा प्रकट की।
‘हाँ! बोलो देव! क्या कहना चाहते हो!‘‘ शिव ने अनुमति दे दी मुस्कराते हुए प्रसन्न मुद्रा में।
‘‘मेरे साथ एक लड़की पढ़ती है.....‘‘ देव ने कहना शुरू किया।
‘‘....हलवाईयों के परिवार से है पर देखने में बिल्कुल पुलिसवाली लगती है!‘‘देव ने बताया।
शिव ने सुना....
‘‘अच्छा!‘‘ जैसे भगवान को भी आश्चर्य हुआ।
‘‘क्लास में सबसे लड़ जाती है ...पर फिर भी हमें अच्छी लगती है!‘‘ देव बोला हल्का सा मुस्कराकर।
शिव ने सुना.....
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