उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘भाभी! ....असलियत में गंगा एक मिठाई बनाने वाले की लड़की है!’ मामी ने धीरे आवाज में मुनमुनाते हुए कहा, सम्भावित रूप से अमीर खानदान से सम्बन्ध रखने वाली सावित्री के व्यवहार का पूर्वाभास करते हुए।
‘क्या बकती हो गीता! सुबह-सुबह तुम ये कैसी बाते कर रही हो? क्या तुम्हें मजाक करने की और कोई बात नहीं सूझी?’ सावित्री ने गीता मामी को डपटारते हुए कहा तिलमिलाते हुए।
‘भाभी! सच में! ये खबर सच है बिल्कुल सच! देव उस लड़की से शादी करने का मन भी रखते हैं मामी ने बताया एक बार फिर से धीमें स्वर में।
‘क्या देव का दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? एक मिठाई वाले की लड़की और मेरी बहू? एक चायवाली कश्यप खानदान की एकलौती बहू? देव को आखिर हो क्या गया है? देव को सात साल की भगवान शंकर की पूजा करके मैंने पाया है और देव ऐसा कैसे कर सकता है? कल से ही मैं देव के लिए सोमवार का व्रत शुरू करती हूँ ...’सावित्री तरह-तरह से बड़बड़ाने लगी जैसे खुद पर ही क्रोधित हो रही हो।
शाम का समय। देव कालेज से लौट आया था। अव इस समय वो अपने कमरे मे था। वो अपने बड़े से डबलबेड पर लेटे-2 पढ़ाई कर रहा था।
‘ठक! ठक....!’ सावित्री ने दरवाजे पर दस्तक दी और कमरे में प्रवेश किया। देव अपनी माँ को सम्मान देने के लिए उठ खड़ा हुआ।
‘देव! मैं ये क्या सुन रही हूँ!’ मुँह बनाते हुए तने हुए स्वर में सख्ती से सावित्री ने कहना शुरू किया।
‘वो कौन लड़की है जिसे तुम पसन्द करते हो?’ सावित्री ने पूछा।
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