उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
शादी
‘‘संगीता! हम गंगा से शादी करना चाहते है‘‘ देव ने संगीता से आज अपने मन की बात कही।
‘‘अच्छा!‘‘ संगीता चौंक पड़ी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
‘‘पर देव! तुम तो कह रहे थे कि शादी-वादी बेकार की चीज होती है?‘‘ संगीता ने देव से पूछा उसकी कही पिछली बातें याद दिलाते हुए।
‘‘हाँ! संगीता! पर अब गंगा ने मिलने के बाद हमारा विचार बदल गया है!‘‘ देव ने माना।
‘‘अब हम जान गये हैं कि शादी करने में कोई नुकसान नहीं! बल्कि ये तो फायदे की चीज है!‘‘ देव ने मुस्की मारते हुए कहा। उसे हल्की-2 हँसी भी आ रही थी ये सोचकर कि जहाँ देव कुछ दिनों पहले शादी को एक झमेले वाली बात बताता था आज वो खुद शादी करना चाहता है। देव का विचार अब खुद बदल गया था।
‘‘इसे कहते हैं विचार परिवर्तन होना‘‘ मैंने सोचा...
‘‘पर देव! गंगा से शादी करोगे? वो तो पागल है!‘‘ संगीता ने याद दिलाया।
पागल से मतलब सच का पागल नहीं, बल्कि गंगा का अस्थिर स्वभाव का होना। कभी गंगा छोटी सी बात पर बीच रास्ते में ही पैर पटकने लगती। कभी गंगा अकारण ही गुस्सा जाती। फिर अचानक से मोटे-मोटे आँसू बहाने लगती। फिर अचानक से खूब जोर-जोर पागलों की तरह हँसने लगती। अब ऐसी लड़की को पागल नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगें। मैंने सोचा...
‘‘हाँ! हमें मालूम है!‘‘ देव ने हाँ में सिर हिलाया।
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