उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘अपना सामान अपने साथ रखें! चोरी होने पर कोई हर्जाना नहीं‘‘ देव ने पढ़ा दूसरी दीवार पर लिखा हुआ।
‘‘अच्छा! तुम्हारी लड़ाका ने हमारा जो दिल चोरी कर लिया, उसका क्या? अब बताओं कहाँ पर जाकर हम रिपोर्ट लिखवाये?.... शायद तभी दीवारों पर लिखवा रखा है कि सामान चोरी हो जाने पर कोई हर्जाना नहीं!‘‘ देव ने गंगा के बाबू की ओर देखकर प्रश्न किया मन ही मन।
‘‘अभी तक मैंने हर पिक्चर में देखा था कि हीरोइन का बाप अमरीश पुरी जैसा एक डेंजर आदमी होता है, और यहाँ भी बिल्कुल वैसा ही है! इसका मतलब बम्बई वाले फिल्म डायरेक्टर बहुत सही फिल्म बनाते हैं जो हमेशा रियल्टी के करीब होती है‘‘ देव ने कहा मुझसे गंगा के बाबू को ध्यान से देखते हुए।
हाँ! मैंने सुना....
देव ने छोटू को बुलाया। चाय-समोसा जो छोटू लेकर आया था उसके पैसे दिये। और दुकान से प्रस्थान किया। अब देव धीमे-धीमे सब कुछ समझने लगा। मैनें महसूस किया....
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