उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
‘हा! हा! हा!‘ गायत्री बड़ी जोर से हँसी देव का ये लव लेटर पढ़कर। हँसते-2 गायत्री का पतला श्री देवी जैसा पेट दर्द होने लगा। मारे ठहाको के गायत्री की आँखों मे आँसू आ गये। देव ने आँसू देखे....
‘‘अरे गायत्री! क्या तुम रो रही हो?‘‘ देव ने चिन्तित होकर पूछा।
‘‘अरे नहीं बुद्वू! ये आँसू तो तुम्हारा ये कामेडी वाला लव लेटर पढ़कर निकल आये हैं!‘‘ गायत्री ने बताया।
‘‘अच्छा! अच्छा!‘‘ देव ने सिर हिलाया।
‘‘अब बताओ क्या लेटर पढ़ने के बाद वो गुस्सायेगी?‘‘ देव ने बड़ी बेचैनी से पूछा।
‘‘नहीं!नहीं! तुमने अच्छा लव लेटर लिखा है, दुनिया कि कोई भी लड़की इसे पढ़कर नहीं गुस्सायेगी‘‘
‘‘ ......और अगर गंगा ये पढ़कर गुस्साये तो समझ लो कि उससे बड़ी गधी पूरी दुनिया में नहीं‘‘ गायत्री ने पूरे काँन्फीडेन्स से कहा।
‘‘ओके! ओके!‘‘ देव को राहत मिली।
कुछ देर बाद।
गंगा आई। संगीता भी आई। ये शनिवार का दिन था। इस दिन कालेज में सभी स्टूडेन्ट्स को कैजुअल कपड़ों में आने की छूट थी। गंगा काले रंग का सलवार-सूट पहन कर आई थी जिसमें वो और अधिक आक्रामक, गुस्सैल व डरावनी लग रही थी। मैंने पाया..। ऊपर से गंगा ने डार्क रेड वाली ढाई किलो लिपिस्टक भी अपने मोटे-मोटे ओठों में पोत रखी थी। मैंने नोटिस किया...
|