उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
कुछ देर बाद क्लास खत्म हुई। आज जो टीचर्स ने पढ़ाया था वो गंगा और देव ने लिखा ही नहीं क्योंकि आई लव यू! आई लव यू! लिखने में बिजी जो थे। मैंने देखा....
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कुछ दिन बीते। रिश्तों की प्रगाढ़ता बढ़ी।
‘‘ ह ल वा इ न !‘‘ देव ने लिखा बड़े प्यार से।
गंगा ने पढ़ा। उसे तुरन्त ही गुस्सा आ गया। गंगा ने देव को आँखे दिखाईं।
‘‘खबरदार! मुझे हलवाइन कहा तो‘‘ गंगा ने देव को डराना चाहा।
‘‘नहीं! तुम तो मेरी हलवाइन ही हो‘‘ चंचल और शरारती देव बिल्कुल भी न डरा।
‘‘आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई मुझे हलवाइन कहे!‘‘ गंगा ने धौंस जमाते हुए कहा लिखकर एक बार फिर से देव को डराते हुए।
‘‘....क्योंकि सब लोग तुमसे डरते हैं! पर मैं तुमसे डरता नहीं हूँ! मैं तो तुमसे प्यार करता हूँ!‘‘ देव ने फट्टाक से लिखा सच-सच।
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‘‘अच्छा!‘‘ गंगा को आश्चर्य हुआ। साथ ही उसे देव की हाजिर जवाबी पसन्द आई। मैंने देखा....
‘‘अच्छा कितना प्यार?‘‘ गंगा ने पूछा लिखकर।
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