उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘चायपत्ती के डिब्बे में जितने दाने‘‘ देव ने बताया लिखकर।
‘‘और?‘‘ गंगा ने फिर से पूछा।
‘चीनी जितनी मीठी‘ देव ने बताया।
‘‘और?‘ गंगा ने फिर पूछा।
‘नीबू जितना खट्टा‘ देव ने फिर बताया।
‘‘और?‘
‘‘मिर्ची जितनी चीखी‘ ।
‘‘और?‘
‘समोसे में जितना आलू‘।
‘और?‘
‘‘रसगुल्ले में जितना रस।‘‘
‘‘और?‘
‘फूल में जितनी खुश्बू‘
‘और?‘.....
‘बर्फ जितनी ठण्डी’
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