उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘ ....तब तो मेरी मिठाई बनती है‘‘ मैडम मुसकुरा उठी।
‘‘ठीक है कल ले आऊँगी‘‘ गंगा को मजबूरी में हाँ करनी पड़ी।
‘‘सिट डाउन!‘‘ मैडम ने बैठने को कहा
गंगा बैठ गई। साथ ही वो बड़े गुस्से मे आ गयी।
‘‘अब मिठाई कहाँ से आएगी?‘‘ गंगा ने देव से प्रश्न किया।
‘‘तुम्हारी यहाँ इतनी बड़ी दुकान है, एक-आध पीस चुरा लेना‘‘ देव ने उपाय बताया।
‘‘बाबू सारी मिठाई गिन कर रखते हैं! कुछ पता है?‘‘ गंगा ने मुँह फुलाते हुए देव को बताया।
ये जानकर बेचारे देव ने अपने दोनों कंधे उचकाये।
‘‘इस कंजूस से शादी करूँगा तो भूखा मर जाऊँगा! रोटी भी ये मुझे गिन-2 कर देगी!‘‘
देव ने कहा। मैंने सुना....
अब चाहे भूखे ही मरना पड़े, मुझे वह व्यक्ति मिल गया है जिसके साथ मैं बूढ़ा हो सकता हूँ और चैन से मर भी सकता हूँ.....
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