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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


‘और?’

‘आग जितनी गरम’

‘और?’

इस तरह गंगा और देव और-और वाला खेल रहे थे तभी..... चित्ररेखा मैडम ने गंगा को हँसते हुए पकड़ लिया.....।

‘‘गंगा! स्टैंड अप! क्यों हँस रही हो? हमें भी बताओ? हम लोग भी हँसें!‘‘ मैडम ने जानना चाहा क्योंकि बाकी के स्टूडेन्ट्स गंभीर मुद्रा में बैठे थे।

हँसती हुई गंगा तुरन्त सकते में आ गई। मैंने देखा गंगा की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई। गंगा को टेंशन हो गई कि कौन सा बहाना मारा जाए? पर गंगा कोई अच्छा बहाना ढूँढ ही नहीं पा रही थी... मैंने पाया...

‘‘गंगा! बोल दो कि तुम्हारे भाई पैदा हुआ है!‘‘ तेज-तर्रार देव ने झट ने बहाना सुझाया।

‘‘मममम....मैडम! कल मेरे भाई पैदा हुआ है!‘‘ गंगा हकलाते हुए बोली।

सारे क्लास के शोर-शराबा हो गया। अब पूरी क्लास के 50 बच्चे मान बैठे कि सच में गंगा के भाई पैदा हुआ। कुछ लड़कियाँ तो इतनी एक्साइटेड हो गई कि ताली बजाने लगीं। हो-हल्ला हो गया। चित्ररेखा मैडम भी इस खबर को सौ में सौ सच मान बैठी। मैंने देखा...

‘‘अरे वाह!‘‘ मैडम को भी बड़ी खुशी हुई ये भाई होने वाली बात जानकर।

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