उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गंगा और देव इसी प्रकार खेल खेलने लगे। दोनों को बड़ा मजा आने लगा। जबकि दूसरी ओर मनोविज्ञान की क्लास चल रही थी। कहना गलत न होगा कि इस सब्जेक्ट का टीचर बहुत ही डेंजर और सीरियस टाइप का इंसान था। कोई 40-45 साल का आदमी। वो अन्य टीचरों की तरह स्टूडेन्ट्स से हँसी-मजाक नहीं करता था। वो कभी भी नहीं हँसता था। हँसना तो दूर! कभी किसी स्टूडेन्ट ने उसे मुस्कराते हुए भी नहीं देखा था।
मनोविज्ञान की इस क्लास में सारे 50 स्टूडेन्ट्स गंभीर होकर बैठते थे। कोई भी हँसी-मजाक, बातें वगैरह नहीं करता था। मैंने पाया....
पर देव तो देव है। महाचंचल और महाशरारती। गंगा से भी हजार गुना ज्यादा तेज-तर्रार।
टीचर ने ब्लैकबोर्ड पर एक पिंजड़ा और एक बिल्ली बनाई थी। आज का चैप्टर था‘ थार्नडाइक का अधिगम सिद्वान्त‘। गंगा और देव इसी प्रकार आई लव यू! लव यू! का खेल खेलते गए। उन्होंने क्लास की ओर ध्यान नहीं दिया।
तभी... टीचर की नजर देव पर पड़ीं। मैंने देखा...
वो गंगा को नहीं देख पाया। वो स्टेज से उतरकर देव की ओर आने लगा।
‘‘देव! जल्दी से आई लव यू वाला पन्ना पलट दो! वरना बहुत बड़ा बम फटेगा! ये तो तुमको टपका देगा!‘‘ मैंने तुरन्त देव से कहा...
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