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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


देव ने तुरन्त पन्ना पलटा और बगल बैठी गंगा से भी ऐसा करने को कहा। गंगा ने मारे खौफ के पूरी काँपी ही चेंज कर दी। गंगा की जान सूख गई। बिल्कुल हलक में आ गई कि अब क्या होगा? टीचर दोनों को रंगे हाथ पकड़ लेगा। क्या पता क्लास से निकाल दिया जाए? तरह-तरह के सवाल गंगा के मन में एक के बाद उठने लगे। मैंने देखा....

गंगा के साथ-2 देव की हालत भी टाइट हो गई। मैंने ये भी देखा। टीचर देव के पास शक्की नजरों से आकर खड़ा हुआ।

‘‘अभी मैंने क्या पढ़ाया, जरा बताओ?‘‘ टीचर ने माँग की।

पर इत्तेफाक से देव ने ये सिद्वान्त कुछ दिन पहले पढ़ लिया था घर पर।

‘‘सर! एक बार थार्नडाइक ने एक बिल्ली को एक पिंजड़े मे बन्द कर दिया। साथ ही मछली के कुछ टुकडे पिंजड़े के बाहर रखे भोजन के रूप में। पिंजड़े में ऐसा बटन लगाया जिसें दबाने पर दरवाजा खुलता था।

कुछ प्रयास के बाद बिल्ली बटन दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोलना सीख गई और बाहर जाकर मछली का टुकड़ा खाने लगी। बिल्ली के इस प्रकार सीखने को ही ‘थार्नडाइक का अधिगम सिद्वान्त‘ कहा गया! देव ने एक ही साँस में फटाक से जवाब दे दिया।

‘‘बहुत अच्छे!‘‘ टीचर खुश हो गया। उसने देव की तारीफ की।

‘‘अच्छा-अच्छा! बैठ जाओ!‘‘ वो वापस ब्लैकबोर्ड की ओर लौट गया।

गंगा की जान में जान आई इस हाई-वोल्टेज एक्शन सीन के बाद। देव ने भी राहत की साँस ली। मैंने देखा..

जब अकबर जैसा महाबली सम्राट जो जंग में अपनी तेज तलवार की धार से एक ही वार में दुश्मनों के सिर धड़ से अलग कर देता था, जब वो अपने बेटे सलीम को अनारकली से प्यार करने में नहीं रोक पाया तो चाक, खडि़या से काम करने वाला ये मामूली सा टीचर भला देव को कैसे रोक सकता है गंगा से प्यार करने में? मैंने सोचा...

ये दिल आशिकाना
ये दिल आशिकाना
ये दिल आशिकाना
ये दिल्लललललल!!
दिलजलों का है ये ठिकाना
बस मोहब्बत का है दीवाना

आके इसमें फिर तुम न जाना हो! ......हो!हो!

ये दिल आशिकाना
ये दिल आशिकाना
ये दिल आशिकाना
ये दिल्लललललल!!

मैंने गाया इस अवसर पर सिर्फ और सिर्फ गंगा और देव के लिए।

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