उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मौत के कुँऐं में मोटरसाइकिल सवार ने गोल-गोल मोटरसाइकिल दौड़ाई। सभी दर्शक देखते रह गये। रिंगमास्टर ने शेर को घुमाकर दिखाया। गोरी-गोरी सारी लड़कियों ने एक दूसरे के कन्धों पर खड़े होकर एक विशाल पेड़ की आकृति बनायी। गंगा और देव दोनों को बड़ा मजा आया। गंगा ने पहली बार कोई सर्कस देखा था इसलिए उसे बहुत मजा आ रहा था। मैंने गौर किया....
एक शो जमीन से 50 फीट की उँचाई पर हुआ। सारे कलाकारों ने ऊपर बॅधी रस्सियों के जाल पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर छलाँग मार कर दिखाया। ऐसा करते हुए कोई भी कलाकार नीचे नहीं गिरा। सारे दर्शक देखते रह गये। गंगा और देव दोनों को बड़ा मजा आया। मैंने देखा...
फिर अंत में एक शो हुआ जिसने सारे दर्शकों के होश उड़ा दिये।
‘‘धू!....धू! ....‘‘ एक मोटरसाइकिल सवार ने अपनी करतब दिखाने वाली मोटर साइकिल स्टार्ट की। फिर पूरा ऐक्सीलेटर लिया... दूसरी ओर 30 फीट की दूरी तक आग ही आग जल रही थी।
और ये क्या? उस कलाकार ने मोटर साइकिल इतनी तेज दौड़ायी कि जलते हुए आग के शोलों को कुछ सेकेण्डों में पार कर गया। मौजूद सभी दर्शक हतप्रद रह गये। ऐसा रोमाँच पैदा हुआ कि सभी खड़े होकर तालियाँ बजाने लगे। सभी खुशी और उन्माद से भरे हुए थे। गंगा भी अपने आपको रोक न पाई और ताली बजाने लगी। बहुत शोर-शराबा होने लगा...
‘‘देव! आई लव यू!‘‘ गंगा ने कहा इंग्लिश में। देव के साथ रहकर अब गंगा ने थोड़ी-2 इंग्लिश बोलना सीख लिया था।
‘‘क्या? जरा जोर से बोलो! बहुत शोर है, मुझे कुछ सुनायी नहीं दे रहा है‘‘ शोर-शराबा इतना ज्यादा था कि देव कुछ सुन ही नहीं पा रहा था
‘‘देदेदे......ववव!! आई लव यू!‘‘ गंगा खूब जोर से चिल्लाई।
देव से सुना।
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