उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘गंगा आई लव यू टू!‘‘ देव भी खूब जोर से मस्ती में चिल्लाकर बोला।
मारे खुशी के गंगा ने देव का हाथ पकड़ लिया। मैंने देखा.....
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जहाँ देव का ये बीएड वाला कोर्स बड़ी धीमी रफ्तार से चलता रहा, वहीं दूसरी ओर गंगा और देव की ये प्यार वाली गाड़ी किसी सुपरफास्ट ट्रेन की तरह बड़ी तेजी से दौड़ती रही। मैंने पाया....
‘‘गंगा आई लव यू!‘‘ देव ने लिखा एक बार फिर से अपनी काँपी पर।
‘‘हाँ पता है! कोई नई बात करो‘‘ गंगा ने लिखा अपनी काँपी पर।
‘‘हमसे शादी करोगी?‘‘ देव ने पूछा लिखकर।
‘‘पता नहीं!‘‘ गंगा ने लिखा बड़ी लापरवाही से, बिना किसी ध्यान के...
‘‘क्या मतलब पता नहीं?‘‘ देव तुरन्त सकते में आ गया। वो व्याकुल हो उठा।
‘‘कभी शादी के बारे में सोचा नहीं!‘‘ गंगा ने बताया ।
‘‘क्यों?‘‘ देव ने कारण जानना चाहा।
‘‘सब्जी पूडि़याँ और समोसे-मिठाइयाँ बनाने से फुर्सत मिले तब तो?‘‘ गंगा ने कारण बताया।
‘‘.....तो कब सोचोगी?‘‘ देव को चिन्ता सताने लगी।
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