लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

322 पाठक हैं

यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

हमें आशा करनी चाहिए, कि जनकला की ओर भी ध्यान जायगा और लोगों में जो पक्षपात उसके विरुद्ध कितने ही समय से फैला है, वह हटेगा। मैं घुमक्कड़ को केवल एक को चुनने का आग्रह नहीं कर सकता। यदि मुझे कहने का अधिकार हो, तो मैं कह सकता हूँ - घुमक्कड़ को जन-संगीत, जन-नृत्य और जन-वाद्य को प्रथम सीखना चाहिए, उसके बाद उस्तादी कला का भी अभ्यास करना चाहिए। जनकला को मैं क्यों प्रधानता दे रहा हूँ, इसका एक कारण घुमक्कड़ी-जीवन की सीमाएँ हैं। उच्च श्रेणी का घुमक्कड़ आधे दर्जन सूटकेस, बक्स, और दूसरी चीजें ढोए-ढोए सर्वत्र नहीं घूमता फिरेगा। उसके पास उतना ही सामान होना चाहिए, जितने की जरूरत पड़ने पर वह स्वयं उठा कर ले जा सके। यदि वह सितार, वीणा, पियानो जैसे वाद्यों द्वारा ही अपने गुणों को प्रदर्शित कर सकता है, तो इन सबको साथ ले जाना मुश्किल होगा। वह बाँसुरी को अच्छी तरह ले जा सकता है, उसमें कोई दिक्कत नहीं होगी। जरूरत पड़ने पर बाँस जैसी पोली चीज को लेकर वह स्वयं लाल लोहे से छिद्र बना के वंशी तैयार कर सकता है। मैं तो कहूँगा : घुमक्कड़ के लिए बाँसुरी बाजों की रानी है। कितनी सीधी-सादी, कितनी हल्की और कितनी सस्ती - किंतु साथ ही कितने काम की है! जैसे बाँसुरी बजानेवाला चतुर पुरुष अपने देश के जन तथा उस्तादी गान को बाँसुरी पर उतार सकता है, नृत्य-गीत में सहायता दे सकता है, उसी तरह सिद्धहस्त बाँसुरीबाज किसी देश के भी गीत और नृत्य को अपनी वंशी में उतार सकता है। कृष्ण की वंशी का हम गुणगान सुन चुके हैं, मैं उस तरह के गुणगान के लिए यहाँ तैयार नहीं हूँ। मैं सिर्फ घुमक्कड़ की दृष्टि से उसके महत्व को बतलाना चाहता हूँ। तान को सुनकर इतना तो कोई भी समझ सकता है, कि बाँसुरी पर प्रभुत्व होना चाहिए, फिर किसी गीत और लय को मामूली प्रयास से वह अदा कर सकता है।

मान लीजिए, हमारा घुमक्कड़ वंशी में निष्णात है। वह पूर्वी तिब्बत के खम प्रदेश में पहुँच गया है, उसको तिब्बती भाषा का एक शब्द भी नहीं मालूम है। खम प्रदेश के कितने ही भागों के पहाड़ जंगल से आच्छादित हैं। हिमालय की ललनाओं की भाँति वहाँ की स्त्रियाँ भी घास, लकड़ी या चरवाही के लिए जंगल में जाने पर संगीत का उपयोग श्वास-प्रश्वास की तरह करती हैं। मान लीजिए तरुण घुमक्कड़ उसी समय एकाएक वहाँ पहुँचता है और किसी कोकिल-कंठी के संगीत को ध्यान से सुनता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book