यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
मैं यह नहीं कहता कि हमारे घुमक्कड़ विदेशी पिछड़ी जातियों में न जायँ। यदि संभव हो तो मैं कहूँगा, वह ध्रुवकक्षीय एस्किमो लोगों के चमड़े के तंबुओं में जायँ, और उस देश की सर्दी का अनुभव प्राप्त करें, जहाँ की भूमि लाखों वर्षों से आज भी बर्फ बनी हुई है, जहाँ तापांक हिमबिंदु से ऊपर उठना नहीं जानता। लेकिन मैं भारतीय घुमक्कड़ को यह कहूँगा, कि हमारे देश की आरण्यक-जातियों में उसके साहस और जिज्ञासा के लिए कम क्षेत्र नहीं है। पिछड़ी जातियों में जाने वाले घुमक्कड़ को कुछ खास तैयारी करने की आवश्यकता होगी। भाषा न जानने पर भी ऐसे देशों में जाने में कितनी ही बातों का सुभीता होता है, जहाँ के लोग सभ्यता की अगली सीढ़ी पर पहुँच चुके हैं, किंतु पिछड़ी जातियों में बहुत बातों की सावधानी रखनी पड़ती है। सावधानी का मतलब यह नहीं कि अंग्रेजों की तरह वह भी पिस्तौल बंदूक लेकर जायँ। पिस्तौल-बंदूक पास रखने का मैं विरोधी नहीं हूँ। घुमक्कड़ को यदि वन्य और भयानक जंगलों में जाना हो, तो अवश्य हथियार लेकर जाय। पिछड़ी जातियों में जानेवाले को वैसे भी अच्छा निशानची होना चाहिए, इसके लिए चांदमारी में कुछ समय देना चाहिए। वन्यमानवों को तो उन्हें अपने प्रेम और सहानुभूति से जीतना होगा। भ्रम या संदेह वश यदि खतरे में पड़ना हो, तो उसकी पर्वाह नहीं। वन्यजातियाँ भी अपरिमित मैत्री भावना से पराजित होती हैं। हथियार का अभ्यास सिर्फ इसीलिए आवश्यक है कि घुमक्कड़ को अपने इन बंधुओं के साथ शिकार में जाना पड़ेगा। पिछड़ी जातियों में जानेवाले को उनके सामाजिक जीवन में शामिल होने की बड़ी आवश्यककता है। उनके हरेक उत्सव, पर्व तथा दूसरे दुख-सुख के अवसरों पर घुमक्कड़ को एकात्मता दिखानी होगी। हो सकता है, आरंभ में अधिक लज्जाशील जातियों में फोटो कैमरे का उपयोग अच्छा न हो, किंतु अधिक परिचय हो जाने पर हर्ज नहीं होगा। घुमक्कड़ को यह भी ख्याल रखना चाहिए, कि वहाँ की घड़ी धीमी होती है, काम के लिए समय अधिक लगता है।
आसाम की वन्यजातियों में जाने के लिए भाषा का ज्ञान भी आवश्यक है। आसाम के शिवसागर, तेजपुर, ग्वालपाड़ा आदि छोटे-बड़े सभी नगरों में हिंदीभाषी निवास करते हैं। वहाँ जाकर इन जातियों के बारे में ज्ञातव्य बातें जानी जा सकती हैं। अंग्रेजी की लिखी पुस्तकों से भी भूमि, लोग, रीति-रिवाज तथा भाषा के बारे में कितनी ही बातें जानी जा सकती हैं। लेकिन स्मरण रखना चाहिए, स्थान पर जा अपने उन बंधुओं से जितना जानने का मौका मिलेगा, उतना दूसरी तरह से नहीं।
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