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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

ह्री और अपत्रपा के अतिरिक्त और भी चीजें हैं, जिनको ध्यान रखते हुए घुमक्कड़ आत्म-रक्षा कर सकता है। यह मालूम है कि यौन-संबंध जहाँ सुलभ है, वहाँ रतिज रोगों की भरमार होती है। उपदंश और मूत्रकृच्छा के भयानक रोग उन स्थानों पर सर्वत्र फैले दीख पड़ते हैं। अल्पविकसित समाज में यौन-संबंधों पर उतना प्रतिबंध नहीं रहता, और जहाँ ऐसे समाज का संबंध अधिक प्रतिबंध वाले तथा अधिक विकसित समाज के व्यक्तियों से होता है, वहाँ रतिज रोगों का भयंकर प्रसार हो पड़ता है। हिमालय के लोग यौन-संबंध में बहुत कुछ दो-ढाई हजार वर्ष पहले के लोगों जैसे थे। अंग्रेजों ने हिमालय के कुछ स्थानों पर गोरों के लिए छावनियाँ स्थापित कीं, जहाँ मैदानी लोग भी पहुँच गये। छावनियों ने रतिज रोगों के वितरण का काम बड़े जोर से किया। आज इन छावनियों के पास के गाँवों में 70 प्रतिशत तक नर-नारी रतिज-रोग-ग्रस्त हैं। शिमला के पास के कुछ गाँव तो उजड़ने को तैयार हैं। एक गाँव में मूत्रकृच्छि के कारण कई घर निर्वंश हो चुके हैं। मूत्रकृच्छ वंश उच्छेद करता और व्याधिग्रस्त व्यक्ति को कष्ट देता है, साथ ही वह उपदंश की भाँति ही एक से दो-से-चार, चार से सोलह करके शीघ्रता से बढ़ता जाता है, इसलिए एक शताब्दी भी नहीं हुई और छावनियों के पास के गाँवों की ऐसी हालत हो गई। उपदंश और भी भयंकर रोग है। वह फैलने ही में तेज नहीं है, बल्कि अपने साथ कुछ और पागलपन की आनुवंशिक बीमारियाँ लिए चलता है। उपदंश का रोगी संतानोत्पत्ति से वंचित नहीं होता, अर्थात् वह अपने रोग को अगली पीढ़ियों तक के लिए छोड़ जाता है, जिससे व्यक्ति ही नहीं जाति के लिए भी वह भयंकर चीज है। मूत्रकृच्छि की तो पेनिसिलीन जैसी कुछ रामबाण औषधियाँ भी निकल आई हैं, लेकिन उपदंश तो अब भी असाध्य-सा है। घुमक्कड़ को इस बात पर सावधानी से विचार करना होगा और ध्यान रखना होगा, जिसमें वह किसी भारी भूल का शिकार नहीं हो जाय। जहाँ यौन-संबंध सुलभ है, वहाँ यदि रतिजरोगों की भयंकरता का ख्याल रखा जाय और जहाँ दुर्लभ है, वहाँ लज्जा और संकोच का कवच पास में रहे, तो कितनी ही हद तक तरुण घुमक्कड़ अपनी रक्षा कर सकता है।

स्त्री-पुरुष का पारस्परिक आकर्षण बहुत प्रबल है। सवाल हो सकता है, क्या घुमक्कड़ के लिए ऐसा रास्ता निकल आ सकता है, जिसमें वह अपने धर्म से पतित हुए बिना जीवन-यात्रा को पूरा कर सके? हाँ, इसका एक ही उपाय है, जिसकी ओर हम संकेत भी कर चुके हैं। वह है दो घुमक्कड़ व्यक्तियों में प्रेम का होना, जिसके लिए वह यह शर्त रख सकते हैं, कि प्रेम उनके लिए पाश बनने का कारण न होगा। ऐसा प्रेम या तो नदी या नाव का संयोग होगा या दो सह-यात्रियों का प्रेम होगा। लेकिन दोनों अवस्थाओं में यह तो ध्यान रखना होगा, कि संख्या चतुष्पाद से अधिक नहीं हो। शर्त कठिन है, लेकिन जिसने घुमक्कड़ का व्रत लिया है, उसे ऐसी शर्तों के लिए तैयार रहना चाहिए।

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