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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

नक्शों के उपयोग के साथ-साथ थोड़ा-बहुत नक्शा बनाने का अभ्यास हो तो अच्छा है। दूसरे नक्शे से काम की चीजें उतार लेना, तो अवश्य आना चाहिए। जो घुमक्कड़ भूगोल के संबंध में विशेष परिश्रम कर चुका है, और जिसे अल्पपरिचित से स्थानों में जाना है, उसको उक्त स्थान के नक्शे के शुद्ध-अशुद्ध होने की जाँच करनी चाहिए। तिब्बत ही नहीं आसाम में उत्तरी कोण पर भी कुछ ऐसे स्थान हैं, जिनका प्रमाणिक नक्शा नहीं बन पाया है। नक्शों में बिंदु जोड़ कर बनाई नदियाँ दिखाई गई होती हैं, जिसका अर्थ यही है कि वहाँ के लिए अभी नक्शा बनाने वाले अपने ज्ञान को निर्विवाद नहीं समझते। आज के घुमक्कड़ का एक कर्त्तव्य ऐसी विवादास्पद जगहों के बारे में निर्विवाद तथ्य का निकालना भी है। ऐसा भी होता है कि घुमक्कड़ पहले से किसी बात के लिए तैयार नहीं रहता, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वह उसे सीख लेता है। आवश्यकताओं ने ही बलात्कार करके मुझे कितनी ही चीजें सिखलाई। मेरे घुमक्कड़ मित्र मानसरोवर-वासी स्वामी प्रणवानंद जी को आवश्यकता ही ने योगी परिव्राजक से भूगोलज्ञ बना दिया, और उन्होंने मानसरोवर प्रदेश के संबंध की कुछ निर्भ्रांत समझी जाने वाली भ्रांत धारणाओं का संशोधन किया। हम नहीं कहते, हरेक घुमक्कड़ को सर्वज्ञ होना चाहिए, किंतु घुमक्कड़ी-पथ पर पैर रखते हुए कुछ-कुछ ज्ञान तो बहुत-सी बातों का होना जरूरी है।

सभी देशों के अच्छे नक्शे न मिल सकें, और सभी देशों के संबंध में परिचय-ग्रंथ भी अपनी परिचित भाषा में शायद न मिलें, किंतु जो भी साहित्य उपलब्ध हो सके, उसे देश के भीतर घुसने से पहले पढ़ लेना बहुत लाभदायक होता है। इससे आदमी का दृष्टिकोण विशाल हो जाता है, सभी तो नहीं लेकिन बहुत से धुँधले स्थान भी प्रकाश में आ जाते हैं। अपने पूर्वज घुमक्कड़ों के परिश्रम के फल से लाभ उठाना हरेक घुमक्कड़ का कर्त्तव्य है।

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