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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

गंतव्य देश की भाषा का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करके घुमक्कड़ को उस देश में जाना चाहिए, यह नियम अनावश्यक है। यदि घुमक्कड़ को आवश्यकता हुई और अधिक समय तक रहना पड़ा, तो वह अपने आप भाषा को सीख लेगा। जहाँ जो भाषा बोली जाती है, वहाँ जाकर उसे सीखना दस गुना आसान है। जिन भाषाओं के लिखने की वर्णमालाएँ हैं, उनका लिखना-पढ़ना आसान है। लेकिन चीनी और जापानी की बात दूसरी है। उनकी लिखित भाषा को सीखना बहुत कम घुमक्कड़ों के बस की बात है, किंतु चीनी-जापानी भाषा बोलना मुश्किल नहीं है - चीनी तो और भी आसान है। भाषा सीखकर न जाने पर भी घुमक्कड़ को गंतव्य देश की भाषा का थोड़ा परिचय तो अवश्य होना चाहिए। अति प्रयुक्त दो सौ शब्द यदि सीख लिए जायँ, तो उनसे यात्रा में बड़ी सहायता होगी। कम-से-कम दो सौ शब्द तो अवश्य ही सीख कर जाना चाहिए। कुछ देशों की भाषाओं के शब्द हमें पुस्तकों से मालूम हो सकते हैं। हिंदी में तो अभी तक इस तरफ काम ही नहीं हुआ है। यदि भारत फिर प्राचीन काल की तरह प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ों को पैदा करना चाहता है, तो यह आवश्यक है कि हिंदी में प्रत्येक देश के सौ-डेढ़ सौ पृष्ठ के परिचय-ग्रंथ लिखे जायँ, जिनमें नक्शे के साथ दो-चार सौ शब्द भी हों।

नए देश में जो बातें सबसे पहले हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं, उनके बारे में हम कह चुके। लेकिन देश के ज्ञान के लिए आँखों से देखी जाने वाली बातें ही पर्याप्त नहीं हैं। हरेक देश और समाज सदियों-सहस्राब्दियों के विकास का परिणाम है। इसलिए वहाँ के इतिहास के बारे में भी कुछ ज्ञान होना चाहिए। यदि वह ऐसा देश है, जहाँ की प्रचलित या धार्मिक भाषा का घुमक्कड़ को परिचय है, तो उसे वहाँ के इतिहास और ऐतिहासिक सामग्री को विशेष ध्यान से देखना होगा। सुमात्रा, जावा, बाली, मलाया, बर्मा, स्याम और कंबोज में जाने वाले भारतीय घुमक्कड़ को तो इस तरफ अधिक ध्यान देना बहुत आवश्यक है। इन देशों के लोग भारतीय घुमक्कड़ से इस विषय में कुछ अधिक आशा रखेंगे। ये देश भारतीय संस्कृति के विस्तार-क्षेत्र हैं, इसलिए वहाँ के लोग अपनी संस्कृति का भारत को उद्गम स्थान मानते हैं, अत: भारतीय से कुछ अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहेंगे। जिस ज्ञान की कमी को किसी यूरोपीय यात्री में पाकर वह कोई संतोष या आश्चर्य नहीं प्रकट करेंगे, उसी कमी को भारतीय घुमक्कड़ में देखकर उन्हें आश्चषर्य और ग्लानि भी हो सकती है। इसलिए हमारे घुमक्कड़ को पहले ही से आवश्यक हथियारों से लैस होकर जाना चाहिए।

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