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यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

तिब्बत का थोड़ा-सा भी अपने शास्त्र को पढ़ा हुआ विद्वान 'धर्मकीर्ति' के इस श्लोक को जानता है -

वेद प्रामाण्यं कस्यजचित् कर्तृवाद:
स्नाने धर्मेच्छाय जातिवादावलेप:।
संतापारांभ: पापहानाय चेति
ध्वस्तरप्रज्ञानां पंच लिंगानि जाड्ये॥

(प्रमाणघार्त्तिक 1/34)

1. वेद को प्रमाण मानना, 2. किसी (ईश्वर) को कर्त्ता कहना, 3. (गंगादि) स्नान से धर्म चाहना, 4. (छोटी-बड़ी) जाति की बात का अभिनान करना, 5. पाप नष्ट करने के लिए (उपवास आदि) करना - ये पाँच अकलमारे हुओं की जड़ता के चिह्न हैं।

किसी विद्वान के सामने यदि कोई भारतीय घुमक्कड़ अपने को बुद्ध-प्रशंसक ही नहीं बौद्ध कहते हुए इन पाँचों बेवकूफियों में से किसी एक का समर्थन करने लगे, तो वहाँ का विद्वान अवश्य मुस्करा देगा। बहुत-से हमारे भाई अपनी मनगढ़ंत धारणा के कारण समझ बैठते हैं कि बौद्ध भ्रम में हैं, और उनकी अपनी धारणाएँ सही हैं। लेकिन उनको स्मरण रखना चाहिए कि बुद्ध की शिक्षा क्या थी, इसकी जानकारी के सारे साधन बौद्धों के पास हैं, इनकी सारी परंपराएँ उनके पास हैं, और बौद्ध-धर्म को उन्होंने जीवित रखा। हमारे यहाँ जब बौद्ध-धर्म के दस-बीस ग्रंथ भी नहीं बच रहे, उस समय भी चीन और तिब्बत ने हमारे यहाँ से विलुप्त् आठ-दस हजार ग्रंथों को अनुवाद रूप में सुरक्षित रखा। इसलिए अपने अधिकार और विचार के रोब जमाने का ख्याल छोड़कर यदि घुमक्कड़ थोड़ा-सा बौद्ध धर्म के बारे में जान लेने की कोशिश करे, तो उपहासास्पद गलतियाँ करने से बच जायगा, चाहे पीछे वह बौद्ध-दर्शन का खंडन भी करे।

हरेक गंतव्य देश के संबंध में तैयारी भी अलग-अलग तरह की होगी। यह आवश्यक नहीं है कि एक-एक देश को देखकर घुमक्कड़ फिर भारत लौटकर तैयारी करे। जिसने यहाँ रहकर 20-21 वर्ष तक आवश्यक शिक्षा समाप्त कर ली और कालेज के पाठ्यक्रम तथा बाहर से घुमक्कड़ी से संबंध रखने वाले विषयों की पुस्तकों को पढ़ लिया है, यदि वह छ साल लगा दे तो सिंहल, बर्मा, स्याम, मलाया, सुमात्रा, जावा, बाली, चंपा, तोङ्किन, चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, चीनी तुर्किस्तान और तिब्बति की यात्रा एक बार में पूर्ण कर भारत लौट आ सकता है, और इतनी बड़ी यात्रा के फलस्वरूप हमारे देश को ज्ञानपूर्ण ग्रंथ भी दे सकता है।

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