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यात्रा वृत्तांत >> घुमक्कड़ शास्त्र

घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

घुमक्कड़ वीरों को वस्तुत: न अमरता का लोभ होना चाहिए, न हजारों बरस तक लंबे कीर्ति-कलेवर की लिप्सा ही। इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें अकीर्ति की लिप्सा होनी चाहिए। उन्हें जनहित का कार्य करना है, समाज और विश्व को आगे ले चलना है। यदि इन कामों में उनकी कुछ भी शक्ति सफल रही, तो वह अपने को कृतकृत्य समझेंगे। जिस तरह सरोवर में डला फेंकने पर लहर उठती है, फिर वह एक लहर से दूसरी लहर को उठाती स्वयं विलीन हो जाती है, किंतु लहरों का सि‍लसिला आगे बढ़ता जाता है, इसी तरह घुमक्कड़ मानवहित लहर उठा देती है, तो उसे उसकी सफलता कहनी चाहिए। कोई-कोई आरंभिक लहरें अधिक शक्तिशाली होती हैं और कोई कम शक्तिशाली। आदमी के कृतित्व का मूल उसकी उठाई लहरों की शक्तिशालिता है। निर्माण का विचार सबसे सुंदर है। बिना अपने कलेवर को आगे बढ़ाये, अपने जीवित समय में विश्व को कुछ देना फिर सदा के लिए शून्य में विलीन हो जाना, यह कल्पना कितनों के लिए अनाकर्षक मालूम होगी। किंतु कितने ही ऐसे भी विचारशील हो सकते हैं जो अपना काम करने के बाद बालू के पदचिह्न की भाँति विलीन हो जाने के विचार से भयभीत नहीं, बल्कि प्रसन्न होंगे। आखिर काल पाँच-दस हजार बरस की अववधि नहीं रखता। यह हमारी घड़ी के सेकेंड की सुई एक मिनट में अपना एक चक्कर पूरा करती है, एक जीवन के साठ बरसों में कितनी बार वह चक्कर काटेगीं? काल की घड़ी की सुई तो कभी थम नहीं सकती। सेकेंड मिलकर मिनट, मिनट मिलकर घंटा, फिर दिन, मास, वर्ष, शताब्दी, सहस्राब्दी, लक्षाब्दी, कोटयाब्दी, अरबाब्दी होती चली जायगी। आज के सेकेंड से अरबाब्दी तक यह काल अविच्छिन्न प्रवाह सा चलता चला जायगा। अमरत्वी के भूखों को यदि इन सहस्राब्दियों में दौड़ने को छोड़ दिया जाय, तो किसी की कल्पना भी दस हजार बरस तक भी उसे अमरत्वन नहीं दिला सकती, फिर अनवधिकाल में सदा अमर होने की कल्पना साहस मात्र है। अंत में तो किसी अवधि में जाकर बालू पर का चरणचिह्न बनना ही पड़ेगा। जब इस पृथ्वी पर जीवन का चिह्न नहीं रह जायगा, तो अमरकीर्ति की क्या बात हो सकती है?

घुमक्कड़ मृत्यु से नहीं डरता। घुमक्कड़ सुकृत करना चाहता है, लेकिन किसी लोभ के वश में पड़कर नहीं। उसने यहाँ जन्म लिया है, उसका स्वभाव मजबूर करता है, कि अपने आसपास को शक्ति-भर स्वच्छ और प्रसन्न‍ रखे। वह केवल कर्त्तव्य और आत्म-तुष्टि के लिए महान-से-महान उत्सर्ग करने के लिए तैयार होता है। बस, यही होना चाहिए घुमक्कड़ परिवार का महान उद्देश्य।


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