कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
४५
कोई रहज़न न कोई राहबर था
कोई रहज़न न कोई राहबर था
हमें लूटा है जिसने हमसफ़र था
जो तूफ़ाँ थम गया उठने से पहले
हमारे डूब जाने का असर था
मुझे तूने ही जो चाहा बनाया
मैं जब दुनिया में आया बेख़बर था
उसे भी ले गया सूरज चुरा कर
जो ख़्वाबों में हमारे रात भर था
उन्हीं लोगों ने मारा ‘क़म्बरी’ को
के जिनका हाथ उसकी पीठ पर था
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