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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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४८

ख़र्च अपनी सारी दौलत कर चुके


ख़र्च अपनी सारी दौलत कर चुके
हम अदा जीने की क़ीमत कर चुके

हम बहुत तुमसे मुरव्वत कर चुके
अब न कर देना हिमाक़त कर चुके

अब वतन से कोई जायेगा नहीं
जिनको करना थी वो हिजरत कर चुके

आओ समझो मसअले को बैठ कर
सारी दुनिया से शिकायत कर चुके

आँख भर आई तो थी माँ-बाप की
रोये जब बेटी को रुख़सत कर चुके

माँ गयी तो हम भी बूढ़े हो गये
ख़ूब करते थे शरारत कर चुके

आईने पर बाल तक आया नहीं
सारे पत्थर ख़ूब कसरत कर चुके

सब बड़े सचमुच बड़े होते नहीं
हम बड़े लोगों की संगत कर चुके

कुछ करो ख़िदमत अदब की ‘क़म्बरी’
ख़ूब लफ्जों की तिजारत कर चुके

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