कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
५८
जागने का जब था अवसर सो गया
जागने का जब था अवसर सो गया
आदमी बेवक़्त अक्सर सो गया
फिर फ़सादों से सहमकर सो गया
अम्न का प्यारा कबूतर सो गया
जब मिला ख़्वाबों का बिस्तर सो गया
ओढ़ कर यादों की चादर सो गया
फिर नदी का करते-करते इंतज़ार
प्यास का मारा समन्दर सो गया
मेरे क़ातिल को न जाने क्या हुआ
रख के मेरे पास ख़ंजर सो गया
राहबर जागा तो सोया क़ाफ़ला
क़ाफ़ला जागा तो रहबर सो गया
घर का मुखिया रात भर जागा किया
भूख की आग़ोश में घर सो गया
भूल कर वो सब पुरानी रंजिशें
आईने के साथ पत्थर सो गया
कुछ अधूरी हसरतें दिल में लिये
प्यार फिर सूली पे चढ़कर सो गया
धूप में जो चल रहा था साथ-साथ
मिल गयी छाया तो रुककर सो गया
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