कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
६७
कोई चौखट कोई दर नहीं
कोई चौखट कोई दर नहीं
मेरा अपना कोई घर नहीं
हमने सब पर भरोसा किया
अब तो अपने ही ऊपर नहीं
पत्थरों से तराशी गयी
मूर्ति कोई पत्थर नहीं
पैर फैलाईये देख कर
ये ख़्यालों की चादर नहीं
जो कटे, पर करे रौशनी
दीप जैसा कोई सर नहीं
ये अहम् ही तो है ‘क़म्बरी’
कोई मेरे बराबर नहीं
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