कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
७८
हम इधर भी रहे, हम उधर भी रहे
हम इधर भी रहे, हम उधर भी रहे
जानते भी रहे, बेख़बर भी रहे
ज़िन्दगी तो रही कैदियों की तरह
बाज़ुओं पर मगर बालो-पर भी रहे
हम तो बढ़ते गये मंजिलों की तरफ़
राह में राहजन, राहबर भी रहे
दूरियाँ भी रहीं रात-दिन की तरह
साथ मेरे वो शामो-सहर भी रहे
दिल में हसरत यही रह गयी ‘क़म्बरी’
ज़िन्दगी का कोई हम-सफ़र भी रहे
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