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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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७९

रेत पर एक मछली मचलने लगी


रेत पर एक मछली मचलने लगी
ज़िन्दगी अपने हाथों को मलने लगी

इस क़दर चाँद-सूरज ने आँहें भरीं
दिन सुलगने लगा, रात जलने लगी

ये उजाले हुये भी तो किस काम के
रौशनी-रौशनी को निगलने लगी

लिख रहे थे जो कल तक मोहब्बत के ख़त
उनकी तहरीर भी अब बदलने लगी

‘क़म्बरी’ मुन्तज़िर है सरे-शाम से
आप आयेंगे कब, रात ढलने लगी

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