कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
१५
मैं चलने को तय्यार हूँ ले चल तू जहाँ भी
मैं चलने को तय्यार हूँ ले चल तू जहाँ भी
अब तेरे हवाले है मेरा जिस्म भी, जाँ भी
घबराओ न हो जायेगा बस्ती में उजाला
छटने को अँधेरा भी है, बादल भी, धुआँ भी
नजरें न उठा और न नजरों को झुका तू
कहते हैं यही, होती है आँखों में ज़बाँ भी
तुझको तो फ़क़त इतना ही मैं जान सका हूँ
रहता भी नहीं सामने लेकिन है अयाँ भी
हम अपनी अना लेके अगर बैठ गये तो
प्यासे के करीब आयेगा एक रोज़ कुआँ भी
साये में इत्मेनान से बैठे रहो न तुम
कुछ देर में आ जायेगी वो धूप यहाँ भी
ये ज़िन्दगी तो ‘क़म्बरी’ मौसम की तरह है
आई अगर बहार तो आयेगी ख़िज़ाँ भी
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