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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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२५

किसे बतलायें क्या-क्या


किसे बतलायें क्या-क्या आँसुओं को हम समझते हैं
कभी जुगनू, कभी मोती, कभी शबनम समझते हैं

यूँ कहने को सभी हैं चाहने वाले हमें लेकिन
वही अपना नहीं होता जिसे हमदम समझते हैं

भुला देते हैं सब नादानियाँ हम इसलिये उनकी
अभी बच्चे हैं दुनिया की हक़ीक़त कम समझते हैं

बदलना उनकी फ़ितरत है बदल जायेंगे वो इक दिन
कहाँ और कब बदलना है ये बस मौसम समझते हैं

हैं दोनों दूर भी, मजबूर भी लेकिन ग़नीमत है
मैं उनके ग़म समझता हूँ, वो मेरे ग़म समझते हैं

लिये भालों पे सर को घूमने वालों पता भी है
कटे सर को हम अपनी जीत का परचम समझते हैं

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