कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
२४
मुझपे वो मेहरबान है शायद
मुझपे वो मेहरबान है शायद
फिर मेरा इम्तेहान है शायद
उसकी ख़ामोशियाँ ये कहती हैं
उसके दिल में ज़बान है शायद
मुझसे मिलता नहीं है वो खुलकर
कुछ न कुछ दरमियान है शायद
उसके जज़्बों की क़ीमते तय हैं
उसका दिल भी दुकान है शायद
मेरे दिल में सुकून पायेगा
दर्द को इत्मिनान है शायद
फिर हथेली पे रच गई मेंहदी
फिर हथेली पे जान है शायद
बात सीधी है और गहरी है
‘क़म्बरी’ का बयान है शायद
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