कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
२८
चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है
चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यों ज़र्द है
जिस तरफ़ देखिये दर्द ही दर्द है
अपने चेहरे में कोई ख़राबी नहीं
आपके आईने पर बहुत गर्द है
इस क़दर हम जलाये गये आग में
अब सूरज भी अपने लिये सर्द है
साथ देता रहा आख़री साँस तक
दर्द को दर्द कहिये न हमदर्द है
बोझ है ज़िन्दगी, इसलिये ‘क़म्बरी’
जो उठाले इसे बस वही मर्द है
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