कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
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धूप का जंगल, नंगे पावों
धूप का जंगल,नंगे पावों, इक बंजारा करता क्या
रेत के दरिया, रेत के झरने, प्यास का मारा करता क्या
बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को
पत्ता-पत्ता सूख चूका था पेड़ बेचारा करता क्या
सब उसके आँगन में अपनी राम कहानी कहते थे
बोल नहीं सकता था कुछ भी घर चौबारा करता क्या
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
ये है तेरी और न मेरी, दुनिया आनी-जानी है
तेरा-मेरा, इसका- उसका फिर बँटवारा करता क्या
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये
बींच भँवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या
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