कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
५०
ज़बाँ पर बद-कलामी आ न जाये
ज़बाँ पर बद-कलामी आ न जाये
कहीं नीयत में ख़ामी आ न जाये
हमारे दिल को तुम छेड़ो न ऐसे
समन्दर में सुनामी आ न जाये
ये कह दो चाँद से छत पर न निकले
सितारों की सलामी आ न जाये
बड़ी जल्दी है दिल को फ़ैसले की
नतीजा दूरगामी आ न जाये
यहाँ बाहर से ताजिर आ रहे हैं
कहीं फिर से ग़ुलामी आ न जाये
कोई रावण हमारे राम दल में
पहन कर रामनामी आ न जाये
यही उलझन है संयोजक को शायद
कोई शायर मुक़ामी आ न जाये
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