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कविता संग्रह >> कह देना

कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें


मेरे लिये यह भी गौरव की बात है कि देश के अनेक शीर्षस्थ कवियों ने मुझे रचनाधर्मी अनुज की तरह स्नेह और प्रोत्साहन दिया। उनमें सर्वश्री नीरज जी, सोम ठाकुर, सुरेश उपाध्याय, माणिक वर्मा, बालकवि बैरागी, संतोषानंद, अशोक चक्रधर’, डॉ. कुँवर बेचैन, डॉ. उर्मिलेश, मोह्दत्त साथी, आत्म प्रकाश शुक्ल, उदय प्रताप सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, शैल चतुर्वेदी, कृष्ण बिहारी नूर’, हुल्लड़ मुरादाबादी आदि प्रमुख हैं।

मैं आरम्भ में ही कह चूका हूँ कि शाइरी मुझे विरासत में मिली और बाद में आज तक मैं जितना भी साहित्यक सृजन कर सका वह सब मेरे हितचिंतकों की शुभकामनाओं का प्रतिफल है। मेरे मन में हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं के प्रति गहरा सम्मान है तथा दोनों भाषाओं को अभिव्यक्ति की तुला पर समान पलड़ो में देखता हूँ। इसीलिए कभी भाषाई विवाद, उर्दू और हिन्दी ग़ज़ल को लेकर, किसी विवाद में नहीं पड़ा। फिर भी इतना ज़रूर कहना चाहूँगा कि ग़ज़ल उर्दू भाषा की एक सशक्त विधा है। जिसके अपने कुछ नियम एवं मापदण्ड हैं। संसार की लगभग सभी भाषाओं में गद्य और पद्य दोनों होते हैं जिनमें अगर आम भाषा होती है तो वहीं साहित्यिक भाषा भी। प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण अपनी नियमावली एवं अपनी शैली होती है जिसके अनुसार विचारों को अभिव्यक्ति मिलती है। कुछ भाषायें अलग-अलग होने के बावजूद एक-दुसरे के बहुत निकट होती हैं। इसी श्रेणी में हिन्दी-उर्दू को रखा जा सकता है। यदि क्लिष्टता एवं संकीर्णता को हटा दिया जाये तो कोई भी दोनों भाषाओं में अंतर आसानी से नहीं कर सकता। इतना होने के बाद भी दोनों का अपना व्याकरण है, अपना विधान है, अपनी शैली है। हिन्दी में पिंगल शास्त्र है तो उर्दू में इल्मे-अरूज़, जहाँ हिन्दी संस्कृत एवं पाली के प्रभाव में है, वहीं उर्दू अरबी और फ़ारसी से प्रभावित है। दोनों की लिपि में भी अंतर पाया जाता है। उर्दू दाहिनी ओर से बाई ओर अरबी, फ़ारसी की तरह लिखी जाती है वहीं हिन्दी बाई ओर से दाहिनी तरफ संस्कृत, पाली की तरह लिपिबध्द की जाती है। उर्दू में इज़ाफ़त से दो शब्दों को जोड़ा जाता है वहीं हिन्दी में इज़ाफ़त का रिवाज नहीं है। हिन्दी के कुछ शब्दों में उनके नीचे बिंदी लगा कर उसको उर्दू ध्वनी में किया जाता है इससे हिन्दी और समृध्द हो गई है ऐसा करना इसलिये भी ज़रूरी है कि यदि ऐसा न किया जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाया करता है। इतनी सब भिन्नतायें होने पर भी दोनों भाषायें इस क़दर घुली-मिली हैं कि उनको एक-दुसरे से अलग किया जाना असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर है। क्यूँकि दोनों भाषाओं की जन्म स्थली एक है, एक ही सभ्यता एक ही संस्कृति के आँगन में दोनों का लालन-पालन और पोषण हुआ है।

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