कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
७३
जिनमें धड़कते दिल हों वो पैकर नहीं रहे
जिनमें धड़कते दिल हों वो पैकर नहीं रहे
अब रह गये हैं सिर्फ़ मकाँ घर नहीं रहे
पैग़ामें-अम्न ले के फिज़ाओं में खो गये
सैयाद रह गये हैं, कबूतर नहीं रहे
सूरज बुलन्द इतना हुआ सर पे चढ़ गया
साये भी अपने क़द के बराबर नहीं रहे
मंज़िल पे पहुँच पाना भी दुश्वार हो गया
रहज़न ही रह गये यहाँ रहबर नहीं रहे
वीरान निगाहों में मिलेगा न कुछ तुझे
जिनमे थे ख़ज़ाने वो समन्दर नहीं रहे
पश्चिम से वो हवा चली सब लूट ले गयी
तहजीब के अब मुल्क में ज़ेवर नहीं रहे
अपना मिज़ाज और है, उनका मिज़ाज और
रिश्ते हमारे इसलिये बेहतर नहीं रहे
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