कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
८५
राहज़न आपकी डगर तक है
राहज़न आपकी डगर तक है
आपको इसकी कुछ ख़बर तक है
मेरा जाना इधर-उधर तक है
उनका मिलना अगर-मगर तक है
फिर निकलने को है नया सूरज
ये अँधेरा तो बस सहर तक है
दिल परिंदे का है बड़ा लेकिन
उसकी परवाज़ बालो-पर तक है
हिन्दिसों में जो ज़िन्दगी देखी
वो सिफ़र से है और सिफ़र तक है
सर बुलंदी को नापने वालों
आस्माँ की पहुँच नज़र तक है
इल्म तो यार बेश-क़ीमत है
मेरी क़ीमत मेरे हुनर तक है
फेसबुक पर फ़क़त नहीं मिलता
आना-जाना भी उसके घर तक है
आबले पाँव के ये कहते हैं
साथ अपना तो बस सफ़र तक है
‘क़म्बरी’ ने जतन से कह डाली
अब ग़ज़ल आपकी नज़र तक है
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