कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
८७
हमारे मुल्क में दुश्मन के लश्कर टूट जाते हैं
हमारे मुल्क में दुश्मन के लश्कर टूट जाते हैं
ये भारत है यहाँ आकर सिकंदर टूट जाते हैं
उठा कर सर को चलना यार अच्छी बात है लेकिन
जिन्हें झुकना नहीं आता वो अक्सर टूट जाते हैं
मुझे ख़ंजर से मत मारो तुम्हीं हो जाओगे ज़ख्मी
मेरे सीने से टकरा कर तो पत्थर टूट जाते हैं
सहल राहों पे चलने के लिये मुश्किल ये होती है
जिन्हें मंजिल नहीं मिलती वो रहबर टूट जाते हैं
उन्हें लगती नहीं है चोट गिरकर आस्मानों से
के इज़्ज़तदार तो नजरों से गिरकर टूट जाते हैं
मेरे आँसू नहीं ये है समन्दर तेरी यादों के
ये जब आँखों से गिरते हैं समन्दर टूट जाते हैं
अरे सुन ‘क़म्बरी’ ग़ज़लों में ये क्या कह दिया तूने
के पत्थर दिल तेरे अश्आर सुनकर टूट जाते हैं
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