लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन

मरणोत्तर जीवन

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9587
आईएसबीएन :9781613013083

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?


अब यदि प्रवृत्ति बारम्बार किये हुए कर्म का परिणाम है, तो जिन प्रवृतियों को साथ लेकर हम जन्म धारण करते हैं, उनको समझने के लिए उस कारण का भी उपयोग करना चाहिए। यह तो स्पष्ट है कि वे प्रवृत्तियाँ हमें इस जन्म में प्राप्त हुई नहीं हो सकती, अत: हमें उनका मूल पिछले जन्म मे ढूंढना चाहिए। अब यह भी स्पष्ट है कि हमारी प्रवृत्तियों में से कुछ तो मनुष्य के ही जान-बूझकर किये हुए प्रयत्नों के परिणाम हैं; और यदि यह सच है कि हम उन प्रवृत्तियों को अपने साथ लेकर जन्म लेते हैं, तब तो बिलकुल यही सिद्ध होता है कि उनके कारण गतजन्म में जान-बूझकर किये हुए प्रयत्न ही हैं - अर्थात् इस वर्तमान जन्म के पूर्व हम उसी मानसिक भूमिका में रहे होंगे, जिसे हम मानव- भूमिका कहते हैं।

जहाँ तक वर्तमान जीवन की प्रवृत्तियों की भूतकालीन, ज्ञानपूर्वक किए हुए प्रयत्नों द्वारा समझाने की बात हैं, वहाँ तक भारतवर्ष के पुनर्जन्मवादी और वर्तमान विकासवादी एकमत हैं, अन्तर केवल इतना ही है कि हिन्दू लोग अध्यात्मवादी होने के कारण उसे जीवात्माओं के सज्ञान प्रयत्नों के द्वारा समझाते हैं और विकासवाद के भौतिक मतवाले उसे पिता से पुत्र में आनेवाले आनुवांशिक संक्रमण द्वारा समझाते हैं। जो शून्य से उत्पत्ति होने का सिद्धान्त मानते हैं, वे तो किसी गिनती मे नहीं हैं।

अब विवाद केवल पुनर्जन्मबादी और भौतिकवादवालों में ही है - पुनर्जन्मवादी लोग यह मानते हैं कि सभी अनुभव प्रवृत्तियों के रूप में अनुभव करनेवाली जीवात्मा में संगृहीत रहते हैं और उसे अविनाशी जीवात्मा के पुनर्जन्म द्वारा संक्रमित किये जाते हैं; भौतिकवादवाले मस्तिष्क को सभी कर्मों के आधार होने के और बीजाणुओं (Cells) के द्वारा उनके संक्रमण का सिद्धान्त मानते हैं।

इस प्रकार हमारे लिए पुनर्जन्म का सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि पुनर्जन्म के और बीजाणुओं के द्वारा आनुवंशिक संक्रमण के मध्य जो विवाद है वह यथार्थ में आध्यात्मिकता और भौतिकता का विवाद है। यदि बीजाणुओं द्वारा आनुवंशिक संक्रमण समस्या को हल करने के लिए पूर्णत: पर्याप्त है, तब तो भौतिकता ही अपरिहार्य है और आत्मा के सिद्धान्त की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि वह पर्याप्त नहीं है, तो प्रत्येक आत्मा अपने साथ इस जन्म में अपने भूतकालिक अनुभवों को लेकर आती है, यह सिद्धान्त पूर्णत: सत्य है। पुनर्जन्म या भौतिकता - इन दो में से किसी एक को मानने के सिवा और कोई गति नहीं है। प्रश्न यह है कि हम किसे मानें?

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book